डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद


# महानायकों/ महापुरुषों को नमन 

डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के प्रति
 गीत -उपमेंद्र सक्सेना एड.

भारत के प्रथम राष्ट्रपति को कभी नहीं अब हम भूलें
अपने तो राजेंद्र प्रसाद जी सबके ही मन को छूलें।

सन् अट्ठारह सौ चौरासी,में जब तीन दिसंबर आया 
जीरादेई गाँव, जिला छपरा, बिहार था उनको भाया
पिता बने जब महादेव जी, घर में था आनंद समाया
था कायस्थ घराना उनका, अच्छे कर्मों की थी छाया

सबके प्यारे हुए गाँव में, सबकी बाहों में वे झूलें
अपने तो राजेंद्र प्रसाद जी सबके ही मन को छूलें।

कलकत्ता से एम.ए., एल-एल. एम. तक शिक्षा पायी
और मुजफ्फरपुर में किस्मत, अध्यापन से चमकायी
कलकत्ता -पटना हाईकोर्ट थी  वकालत  अपनायी
दीन -दु:खी, निर्बल की सेवा, में ही उनको लगी भलाई

संविधान की सभा बनी जब,सब उनको अध्यक्ष कबूलें
अपने तो राजेंद्र प्रसाद जी सबके ही मन को छूलें।

गाँधी जी के वे अनुयायी, सीखा सबको गले लगाना
हुए सभापति तीन बार वे, कांग्रेस ने उनको माना
सन् उन्निस सौ पचास में छब्बीस जनवरी का दिन आया
बने राष्ट्रपति भारत के वे,जो गणतंत्र दिवस कहलाया

उनकी गौरव- गाथा का हम वर्णन करके इतना फूलें
अपने तो राजेंद्र प्रसाद जी सबके ही मन को छूलें।

सन् उन्निस सौ बांसठ में जब,उनको भारत- रत्न मिला था
 भारत माता धन्य हुई तब,मन का सुंदर सुमन खिला था
वे सच्चे साहित्यकार थे, उनको किससे यहाँ गिला था
नैतिकता का मान दंड भी, उनके कारण नहीं हिला था 

कर्तव्यों की पगडंडी का, ब्याज नहीं हम कभी वसूलें
अपने तो राजेंद्र प्रसाद जी सबके ही मन को छूलें 

रचनाकार- उपमेन्द्र सक्सेना एड.
'कुमुद-निवास'
 बरेली (उ० प्र०)
 मोबा०- नं०- 98379 44187

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7 Comments

बहुत ही सुंदर

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Achha likha hai 💐

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Suryansh

12-Oct-2022 09:24 PM

Wahhh Superr से भी बहुत बहुत uperr

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